हर गली में राम होंगे तो रावण कहां रह पायेगा..If Ram is there in every street then where will Ravana be able to live?
सनातन धम संस्था के प्रयासों की हो रही सराहना
गुरूकुल, चरित्र निर्माण और आत्मरक्षा की दिशा में हो रहे सकारात्मक प्रयास
600 बच्चे निभायेंगे लामलीला के विभिन्न किरदार
अशोक श्रीवास्तव की समीक्षा: द्वापर में भगवान कृष्ण और त्रेता में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम ने मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर हो रहे अत्याचार और बुराइयों को खत्म किया और धर्म की स्थापना की। पौराणिक कथायें साक्ष्य हैं कि जब जब पृथ्वी पर अनाचार बढ़ा, बुराइयां हद से ज्यादा बढ़ गई तों हमारे किसी आराध्य ने उन्हे समाप्त करने का वीड़ा उठाया। लेकिन वह द्वापर और त्रेता युग की बात थी।
यह कलियुग है। बताया जाता है कि अभी यह आधा भी नही बीता है। तस्वीरें आपके सामने हैं। रिश्तों की मर्यादा लगभग खत्म हो चुकी है, भारतीय नारी नग्न होकर नाच रही है, देह का व्यापार हो रहा है। झूठ, फरेब, नफरत को लोग हथियार बना रहे हैं और सत्ता हासिल कर रहे हैं। उपयोग व विलासिता की वस्तुयें लोग येन केन पाना चाहते हैं। हम पहले कृषि प्रधान थे, बाद में पुरूष प्रधान, फिर अर्थ प्रधान और अब धर्म प्रधान हो रहे हैं। मतलब साफ है तेजी से बदल रहे घटनाक्रम में हम अपने धरोहर, धर्म और इंसानियत को नही बंचा पाये तो हम भी नहीं बचेंगे। लेकिन ये सब होगा कैसे। कौन जिम्मेदारी लेगा। किसी को तो आगे आना पड़ेगा। जहां तक हमे समझ में आता है बस्ती में इसकी शुरूआत हो चुकी है।
सनातन धर्म संस्था आगे आई है। जिद है कि जितने रावण होंगे हम उतने राम लायेंगे और धर्म ध्वज झुकने नही देंगे। गुरूकुल की पुनः स्थापना से लेकर चरित्र निर्माण और आत्मरक्षा के लिये नई पीढ़ी को तैयार करने जैसे कठिन व व्यापक कार्य इनके एजेंडे मे है। जमीनी स्तर पर इसके प्रयास शुरू हो गये हैं। कुछ लोग इन पर सनातन धर्म संस्था के कार्यकर्ताओं पर हंस रहे हैं, उनका मजाक उड़ा रहे हैं तो कुछ लोग उनकी गतिविधियों को आय का जरिया बता रहे हैं, लेकिन जो सच्चाई जानते हैं उनके सामने सिर झुकाते हैं और यथासंभव सहयोग देने को आतुर हो जाते हैं।
इसी का नतीजा है कि संस्था के साथ धर्मावलंबियों व समाजसेवियों की एक बड़ी टीम आ चुकी है। 600 से ज्यादा स्कूली बच्चे रामलीला के विभिन्न किरदार निभा रहे हैं। महीनों से विद्यालयों में उनका प्रशिक्षण चल रहा है। हजारों बच्चों की भीड़ में अब वे अपने निजी नाम के अलावा राम, हनुमान, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के नाम से जाने पहचाने जा रहे हैं। निश्चित रूप से ये प्रयास एक दिन ऐसा परिणाम लेकर आयेंगे जिसे देखकर सभी हैरान हो जायेंगे। यह हमेशा सच हुआ है कि बदलाव खुद चलकर नही आता, बदलाव हमेशा हमारे आपके कंधों पर बैठकर आता है। कलियुग ने भी राजा परीक्षित के मुकुट में अपना स्थान बनाया था। अब अगर बदलाव आयेगा तो ऐसी ही संस्था के कंधों पर सवार होकर आयेगा।
एक साथ हजारों बच्चे, परिवार इसकी तैयारियों में जुट गये हैं। पंकज त्रिपाठी, कैलायानाथ दूबे, अखिलेश दूबे, अनुराग शुक्ल, कैप्टन केसी मिश्र सरीखे अनगिनत नाम हैं जिन्होने लोगों की आलोचनाओं, आरोपों को नजरअंदाज कर आगे कदम बढ़ा दिया है। पूरी तरह से भारतीय संस्कृति, सनातन के प्रति समर्पण इनकी रग रग में है। ये बदलाव लाने में सक्षम हैं और इनका चाल चरित्र चेहरा भी अनुकूल हैं। पूर्व के वर्षो की भांति 03 नवम्बर से रामलीला होने जा रही है। गली मोहल्लों में इसको लेकर जागरूकता कार्यक्रम किये जा रहे हैं। निश्चित रूप से आयोजन पहले से भव्य होगा। लेकिन इन सबके बीच एक बात को गांठ बांध लेने की जरूरत है ‘’कोई भी धर्म नफरत, हिंसा, झूठ, फरेब और अमानवीय सोच की बुनियाद पर नही खड़ा हो सकता‘‘ धर्म को इंसानियत, सहयोग, मोहब्बत, सच्चाई और पारदार्शिता की बुनियाद पर खड़ा किया जाये तो यह जल्द ही स्थापित हो जायेगा और दीर्घकाल तक प्रभावी बना रहेगा’’अगर ये चीजें नही हैं तो वो धर्म भी नही हो सकता।।
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