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जाति जनगणना पर झुकी मोदी सरकार, देश को आतंकी हमले के बदले का इंतजार

जाति जनगणना पर झुकी मोदी सरकार, देश को आतंकी हमले के बदले का इंतजार
नेशनल डेस्कः
राहुल गांधी की डिमांड के आगे केन्द्र की मोदी सरकार बैकफुट पर आई और जाति जनगणना कराने का महत्वपूर्ण फैसला लिया। सदन में राहुल गांधी ने चीख चीख कर कहा था ‘‘जाति जनगणना कराकर दम लेंगे‘‘। उनकी इस डिमांड का अखिलेश यादव ने समर्थन किया, तेजस्वी यादव ने भी सुर में सुर मिलाया। सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा। 


माना जा रहा है कि इस फैसले का प्रभाव आने वाले कुछ सालों में भारत की राजनीति में दिखाई देगा। राहुल गांधी ने अब जाति जनगणना की टाइमलाइन पर बात करनी शुरू कर दिया। मसलन सरकार को बताना होगा कि जाति जनगणना कब शुरू होगी और कब तक पूरी होगी। आपको याद दिला दें जाति जनगणना के मुद्दे पर सदन में अनुराग ठाकुर ने यहां तक कह दिया था कि ‘‘जिसे खुद अपनी जाति का पता नही वह जाति जनगणना की बात कह रहा है’’। बाद में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का बयान आया ‘‘बंटेंगे तो कटेंगे’’। नतीजा ये हुआ कि इन्ही की सरकार ने जाति जनगणना का फैसला लेकर इन्हे शर्मसार कर दिया है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद देशभर में फैले आक्रोश के बीच केंद्र सरकार ने एक बड़ा राजनीतिक फैसला लिया है। 


सरकार ने अगली जनगणना में जातियों की गणना कराने का फैसला किया है। इस बात की जानकारी केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी। केंद्र सरकार के इस फैसले को एक बड़ा राजनीतिक कदम बताया जा रहा है। सरकार ने यह फैसला बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लिया है। बिहार की राजनीति में जाति एक बड़ा मुद्दा है। देश में इससे पहले जातीय जनगणना 1931 में उस समय कराई गई थी, जब देश में अंग्रेजी सरकार थी। देश में सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले राजनीतिक दल इसकी मांग बहुत पहले से कर रहे थे। बाद में इसमें कांग्रेस भी शामिल हो गई थी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी जातिगत जनगणना को संसद और संसद से बाहर एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना रहे थे। 


यह एक केंद्रीय मुद्दा बन गया था। जाति जनगणना की मांग का बीजेपी ने कभी सीधा विरोध नहीं किया था। लेकिन वह कभी खुलकर सामने नहीं आई। पिछले साल के शुरू में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी जाति जनगणना की विरोधी नहीं है। सितंबर 2024 में केरल में आयोजित आरएसएस की अखिल भारतीय समन्वय बैठक से पहले आरएसएस के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा था, ’’देश और समाज के विकास के लिए सरकार को डेटा की जरूरत पड़ती है. समाज की कुछ जाति के लोगों के प्रति विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. इन उद्देश्यों के लिए जाति जनगणना करवाना चाहिए. इसका इस्तेमाल लोक कल्याण के लिए होना चाहिए।


जातीय जनगणना का सबसे अधिक फायदा ओबीसी को होने को होने वाला है। ओबीसी का मानना है कि उनकी जनसंख्या की सही जानकारी न होने की वजह से उन्हे शिक्षा और नौकरियों में सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। देश भर में बीजेपी को मिल रही सफलता के पीछे ओबीसी का बड़ा हाथ है। बीजेपी नरेंद्र मोदी के उदय के बाद से ब्राह्मण-बनिया की पार्टी मानी जा रही थी। बाद में बीजेपी के साथ ओबीसी की जातियां लामबंद हुई हैं। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में नुकसान पहुंचाया, उसने बीजेपी और आरएसएस को परेशान कर दिया था। इसी के बाद आरएसएस भी जातीय जनगणना के समर्थन में आगे आया। केन्द्र सरकार के जाति जनगणना कराने के फैसले को राहल गांधी ओर विपक्ष की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि यह फैसला उस वक्त आया है जब पूरा देश पहलगाम में हुये आतंकी हमले को लेकर गुस्से मे है और मोदी सरकार से आतंकी हमले का बदला लेने की मांग की जा रही है।


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