अशोक श्रीवास्तव की समीक्षा समीक्षा जरूर पढ़िये ‘‘पुलिसिया चूक से हो रहे अपराध’’
बस्ती, 04 जुलाई (अशोक श्रीवास्तव की समीक्षा)। 50 फीसदी अपराधों की वजह पुलिस स्वयं है। ज्यादातर आपराधिक मामलों में मुकदमा दर्ज करने में पुलिस हीलाहवाली करती है, पीड़ित थक हारकर बैठ जाते हैं। बडी मशक्कत के बाद मुकदमा दर्ज हो जाता है तो आरोपियों का नाम केस डायरी से निकालने का खेल शुरू हो जाता है। इसमें पुलिस की मोटी आमदनी हो जाती है।
एक दो आरोपियों को जेल भेजकर मामले की इतिश्री कर देते हैं। कई मामले ऐसे प्रकाश में आते हैं जिसमे आरोपी पक्ष बहुत मजबूत होता है, इसमे पुलिस को अच्छी खासी रकम मिलती है और पीड़ित के लिये न्याय एक दिवास्वप्न बनकर रह जाता है। नजीर के लिये हमे दूर जाने की जरूरत नही है। बस्ती जनपद में विगत दिनों हुई घटनाओं में पुलिस की भूमिका विवादित रही है। शहर के बैरिहवां और पैकोलिया थाने के जीतीपुर के जमीनी विवाद ने पुलिस पर गंभीर सवाल खड़ा किया है।
अभी ये मामले चर्चा में थे सोनहा थाना क्षेत्र के बेइली (रेहरवा) गांव में मामूली विवाद को लेकर दबंग पड़ोसियों ने सुषमा शर्मा, उनके पति रामकेश शर्मा, सास को लाठी डंडे और सरिया से मारकर अधमरा कर दिया। बीच बचाव करने पहुंची बेटी, बहू और नाती को भी चोट लगी। रामकेश के सिर में आठ टांके लगे हैं, दादी मरणासन्न हैं और सुषमा का हाथ टूट गया है। स्थानीय पुलिस ने इस मामले में राम औतार, मोनू, मोहित और राहुल के खिलाफ बीएनएस की धाराओं के तहत मुकदमा पंजीकृत किया है।
घटना 25 जून की है, एफआईआर 26 को दर्ज हुई है। लेकिन एक सप्ताह बाद भी पुलिस ने किसी को गिरफ्तार नही किया है। जाहिर है आरोपियों का मनोबल ऊंचा होगा। सुषमा शर्मा का बेटा सुबाष मुंबई में रहकर मेहनत मजदूरी करके परिवार चलाता है। घटना की जानकारी होने पर वह गांव आया है। दबंग पड़ोसियों ने उसे जान से मारने की धमकी दिया है। कहते हैं पूरो परिवार को खत्म कर देंगे। पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। इस मामले में पुलिस किस बात का इंतजार कर रही है। क्या इससे बड़ी वारदात होने पर पुलिस के हाथ खुलेंगे।
इतना ही नही मीडिया में खबर छपने या किसी से फोन करने पर सोनहा के दरोगा जी पीड़ितों पर आगबबूला हो रहे हैं। एकदम स्पष्ट है, बस्ती पुलिस ने जीतीपुर की घटना से कोई सबक नही लिया। नतीजा ये हुआ कि महीने भीतर दो किशोरों की निर्मम हत्या हो गई। दुबौलिया की घटना पुलिस की इसी चूक का नतीजा है। यहां प्रधान और सेक्रेटरी के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत करने की कीमत इकलौते बेटे को खो कर चुकानी पड़ी। हैरानी इस बात की है पीड़ित पक्ष ने स्थानीय पुलिस, पुलिस कप्तान से लेकर डीजीपी मुख्यमंत्री तक को 16 जून को पत्र भेजकर हत्या की आशंका जताई थी।
लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से नही लिया और 02 जुलाई को इतनी बड़ी वारदात हो गई। धमकी देने वाले समय से जेल गये होते तो आपराधिक गतिविधियां हतोत्साहित होतीं और संभव था इतनी संगीन वारदात नही होती। ऐसी ही लापरवाही सोनहा पुलिस कर रही है। समय रहते पुलिस कप्तान को सावधान होना होगा। बहुत बेहतर होगा छोटे मामलों की अनदेखी न की जाये वरना जनपद में हो रही आपराधिक गतिविधियों पर लगाम कसना संभव नही होगा और रोज कोई परी श्रीवास्तव या अशोक यादव अपनी जान देकर पुलिसिया चूक की कीमत चुकाते रहेंगे।
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