प्रगतिशील लेखक संघ ने जयंती पर याद किया मुंशी प्रेमचंद को
उनकी कहानियों में आम आदमी की समस्याओं और जीवन के उतार-चढ़ाव को दिखाया गया है जो आज भी दिल को छू जाती है। कहा कि महान साहित्यकार, हिंदी लेखक और उर्दू उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन काल में कई रचनाएं लिखी हैं। जिसमें गोदान, कफन, दो बैलों की कथा, पूस की रात, ईदगाह, ठाकुर का कुआं, बूढ़ी काकी, नमक का दरोगा, कर्मभूमि, गबन, मानसरोवर, और बड़े भाई साहब समेत कई रचनाएं शामिल हैं। उनका रचना संसार सदैव हमें मार्ग दर्शन देता रहेगा।
प्रेम चन्द की जयन्ती पर आयोजित कार्यक्रम में कुलदीपनाथ शुक्ल, डा. वी.के. वर्मा, राम कृष्ण लाल जगमग, डा. अजीत कुमार श्रीवास्तव, अर्चना श्रीवास्तव, बी.के. मिश्र, राजेन्द्र सिंह ‘राही’, त्रिभुवन प्रसाद मिश्र, दीपक सिंह प्रेमी, जगदम्बा प्रसाद भावुक ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की साहित्यकार, कहानीकार और उपन्यासकार रूप में चर्चा अक्सर होती है। पर उनके पत्रकारीय योगदान को लगभग भूला ही दिया जाता है। जंगे-आजादी के दौर में उनकी पत्रकारिता ब्रिटीश हुकूमत के विरुद्ध ललकार की पत्रकारिता थी। इसकी बानगी प्रेमचंद द्वारा संपादित काशी से निकलने वाले दो पत्रों ‘जागरण’ और ‘हंस’ की टिप्पणीयों-लेखों और संपादकीय में देखा जा सकता है।
अध्यक्षता करते हुये प्रगतिशील लेखक संघ अध्यक्ष विनोद कुमार उपाध्याय ने कहा कि प्रेमचंद न सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर के मशहूर और सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले रचनाकारों में से एक हैं। 1916 में अगस्त के महीने में उन्हें नॉर्मल हाई स्कूल, गोरखपुर में सहायक मास्टर के रूप में पदोन्नत किया गया। गोरखपुर में, उन्होंने कई पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया। इस अवसर पर अनुराग लक्ष्य और शव्द सुमन, बीएनटी लाइव की ओर से प्रधानाचार्य रमाकान्त द्विवेदी और बब्बन प्रसाद पाण्डेय और डा. अजीत कुमार श्रीवास्तव को उनके साहित्यिक योगदान के लिये सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से रहमान अली रहमान, अफजल हुसेन अफजल, चन्द्रमोहन लाला, सागर गोरखपुरी, शबीहा खातून, तौव्वाब अली, असद बस्तवी, राम सजन यादव, हरिकेश प्रजापति, अनवार हुसेन पारसा के साथ ही अनेक साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित रहे।
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