अशोक श्रीवास्तव की समीक्षा: बस्ती डेवलपमेन्ट अथॉरिटी या भ्रष्टाचार डेवलपमेन्ट अथॉरिटी ?
Ashok Srivastava's review: Basti Development Authority or Corruption Development Authority?
28 अगस्त को जब बीडीए के अधिकारी बिल्डिंग को सील कर रहे थे उस वक्त मीडिया दस्तक संवाददाता भी मौके पर मौजूद था। सीलिंग की कार्यवाही और पुलिस फोर्स देखकर मौके पर भीड़ जमा हो गई थी। उसी बीच से कुछ लोग कह रहे थे, आज सील हो रहा है कल खुल जायेगा। न सील होने का कारण चता चलेगा और न खुलने का। दबी जुबान से लोग यह भी कह रहे थे कि सीलिंग की कार्यवाही से बीडीए के अधिकारी लाखों रूपया ले चुके है। मसलन जितने रूपयों में एक गरीब का मकान बनकर खड़ा हो सकता है उससे ज्यादा बीडीए के अधिकारी रिश्वत ले चुके हैं। राजनीतिक पकड़ होने के बावजूद भवन स्वामी को समय समय पर बीडीए को खुश करना पड़ा है। बाद में सीलिंग रिमूव हो जाती है।
बीडीए का यह कृत्य कोई नया नही है। अधिकारियों का अत्याचार सिर के ऊपर चला गया था तो करीब दो साल पहले बस्ती में आम जनता और व्यापारियों ने पीआरजेपी (पूर्वांचल राज्य जनान्दोलन पार्टी) के बैनर तले बड़ा आन्दोलन खड़ा किया था। इसके बाद अधिकारी कुछ ठण्डे पड़े थे। हालांकि बाद में पीआरजेपी ने भी जनहित के मुद्दों पर अपना मुंह बंद कर लिया। बीडीए के खिलाफ भवन का मानचित्र बनाने वाले इंजीनियर्स ने भी मोर्चा खोला था। तब भी स्थितियां असहज हो गई थीं इंजीनियर्स ने कार्य बहिष्कार किया था। सभी जानते हैं आर्किटेक्ट और बीडीए का चोली दामन का साथ है, बाद में इंजीनियर्स भी संतुष्ट हो गये।
फिलहाल कुल मिलाकर बीडीए को लेकर आम जनता की राय अच्छी नही है क्योंकि बीडीए ने अब तक केवल भ्रष्टाचार डवेलेपमेन्ट अथॉरिटी के रूप में अपनी पहचान बनाई है। शहर में सैकड़ों लोग बीडीए के अधिकारियों से त्रस्त हैं लेकिन बहुत कम लोग हैं जो जुबान चलाने की हिम्मत रखते हैं, बाकी सिस्टम का हिस्सा बन जाते हैं। हैरानी है कि बीडीए के अधिकारियों ने आज तक कोई प्रेस वार्ता नही की। न तो मीडिया के माध्यम से नियम कानून सार्वजनिक किये गये और न ही मकानों के सीलिंग का कारण बताया गया। बड़ी से बड़ी कार्यवाही पर कोई प्रेस विज्ञप्ति नही जारी की गई। इसके पीछे की वजह सिर्फ एक है कि कार्य में पारदर्शिता और इमानदारी नही है। इसीलिये मीडिया से हर बात छिपाई जाती है। आम जनता का मानना है कि बीडीए की कार्यवाहियां और उसकी वजह सार्वजनिक होनी चाहिये, जिसे सज्ञान लेकर कोई दूसरा भवन निर्माण की शर्तों को भीलीभांति जान ले। जरूरत है कि बीडीए अपनी छबि में सुधार लाये और भ्रष्टाचार डवेलेपमेन्ट अथॉरिटी की छबि से बाहर अपने वास्तविक रूप बीडीए के रूप में जनता के सामने आये। अशोक श्रीवास्तव की समीक्षा
Post a Comment
0 Comments