मुंबई की निहारिका से जानिये कितना जरूरी हैं हमारे लिये पड़ोसी Know from Mumbai's Niharika how important our neighbors are for us.
कल शाम को भाई का फोन आया। मैं ऑफिस से घर आकर अभी बैठी ही थी कि उसने कुछ अजीब सा टोन में बात शुरू की। पहले तो सामान्य बातें हुईं, लेकिन फिर उसने कहा, “थोड़ा आराम से सुनना और ज़्यादा भावुक मत होना।” और फिर उसने वो शब्द कहे जिसने मेरी दुनिया हिला दी, “अनूप चाचा नहीं रहे।” ये सुनते ही ऐसा लगा जैसे ज़मीन मेरे पैरों से खिसक गई हो।
मैं कुछ समझ नहीं पाई। मां मेरे सामने बैठी थीं, वो भी थोड़ी परेशान थीं, लेकिन मेरे आंसू नहीं रुक रहे थे। मेरा सारा बचपन मेरी आंखों के सामने घूमने लगा। चाचा का ऑफिस से आना, मुझसे पानी मांगना, और मैं लड़खड़ाते हुए उनके लिए पानी लेकर जाना, उनकी वो बातें “का रे कांटैन और का कैलू आज”, मेरी पढ़ाई में मदद करना, मुझे गाड़ी चलाना सिखाना, और मुझे बोलने में आत्मविश्वास दिलाना, ये सब यादें ताज़ा हो गईं। खाना बनाना मैंने मुकुल चाचा से सीखा था, लेकिन बाहर की दुनिया का काम मैंने अनूप चाचा से सीखा था और खुद को अच्छी तरह से पेश कैसे करना है, ये मैंने सोनी मामी से सीखा था।
आप सब शायद सोच रहे होंगे कि अनूप चाचा मेरे खून के चाचा थे। नहीं, वो हमारे पड़ोसी थे। लेकिन हमारा रिश्ता पड़ोसी से कहीं ज्यादा था। वो सब जिनके बारे में मैंने अभी-अभी बताया, वो सारे हमारे पड़ोसी थे। जब मेरी दादी का देहांत हुआ था और मेरा एग्ज़ाम था, तब मेरे माँ-बाप मुझे गाँव चले गए थे और उन्होंने मुझे इन पड़ोसियों के पास छोड़ दिया था। उन्होंने मुझे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा था। कितने अच्छे दिन थे और कितने अच्छे पड़ोसी थे! अब वो दिन कहाँ चले गए? आज लोग इतने बेरहम क्यों हो गए हैं? अपने पड़ोसी की बच्ची को परेशान करने से पहले ये नहीं सोचते कि वो बच्ची कभी उन्हें मुस्कुराकर नमस्ते बोली होगी?
पड़ोसी का रिश्ता खत्म सा हो गया है। मुझे आज भी याद है, अगर किसी पड़ोसी के घर में मेरा पसंदीदा खाना बनता था, तो मैं बिना किसी झिझक के वहीं खा लेती थी। लेकिन आज तो लोग अपने पड़ोसी के घर चाय पीने तक नहीं जाते। यहाँ तक कि मुकुल चाचा का बेटा पढ़ाई नहीं करता था, तो मैं उसे मार भी देती थी, लेकिन उसके माँ-बाप मुझे कभी कुछ नहीं कहते थे। वो बस इतना कहते थे कि “पढ़ेगा नहीं तो मरेगा तो खाएगा ही”। लेकिन आज अगर आप किसी पड़ोसी के बच्चे को ऊँची आवाज़ में कुछ कह दें, तो झगड़ा हो जाएगा।
ऐसी पता नहीं कितनी यादें हैं हमारी हमारे ऐसे पड़ोसियों के साथ और वो पड़ोसी आज भी हमारे साथ खड़े हैं। मुकुल चाचा (वो भी मेरे पड़ोसी ही थे) के बेटे के बारे में मेरे बच्चों को यही पता है कि वो मेरे चाचा का बेटा है। या तो हमें पड़ोसी बहुत अच्छे मिले लाइफ में या सारे पड़ोसी पहले ऐसे ही हुआ करते थे और अब तो ऐसे पड़ोसी बनने क्यों बंद हो गए? क्योंकि पहले पड़ोसी में कोई मामा-मामी था तो कोई चाचा-चाची तो कोई माऊसी-माऊसी तो कोई बस फूफा लेकिन अब सब अंकल-आंटी हैं।
आप बताइए, आपके पड़ोसी कैसे हैं और आप कैसे पड़ोसी हैं? क्या आपको लगता है कि आज के समय में पड़ोसी का रिश्ता खत्म हो रहा है? आप अपने पड़ोस को कैसे बेहतर बना सकते हैं? आपके लिए पड़ोसी का क्या मतलब है? लेखिका ‘निहारिका’ एक सामाजिक विचारों वाली महिला हैं जो मुबई में रहती हैं।
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