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दंपति का विश्वास जीत परिवार नियोजन में मददगार बन रहीं आशा कार्यकर्ता

दंपति का विश्वास जीत परिवार नियोजन में मददगार बन रहीं आशा कार्यकर्ता


गोरखपुर, 11 जुलाई। परिवार नियोजन के कई उपयोगी साधन मिथक और भ्रांतियों के कारण दंपति अपनाने से हिचकते हैं, लेकिन सही समय पर उचित सलाह मिल जाए तो काम बन जाता है। यह साबित कर दिखाया है जिले की तीन अलग अलग आशा कार्यकर्ता ने। उन्होंने दंपति को पूरी जानकारी देकर उनका विश्वास जीता और फिर परिवार नियोजन में उनकी मददगार बन गयीं। 


पिपराईच ब्लॉक के सिधावल उपकेंद्र की आशा कार्यकर्ता नीता शर्मा ने महिला नसबंदी, सहजनवां ब्लॉक के बघौरा उपकेंद्र की आशा कार्यकर्ता नीलम गुप्ता ने त्रैमासिक अंतरा इंजेक्शन और चरगांवा ब्लॉक के रामपुर चक उपकेंद्र की आशा कार्यकर्ता पूनम ने पीपीआईयूसीडी की सेवा में पिछले वर्ष जिले में कीर्तिमान स्थापित किया है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने इन तीनों कार्यकर्ता को बधाई देते हुए जनपद की सभी अग्रिम पंक्ति कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वह 11 से 31 जुलाई तक प्रस्तावित विश्व जनसंख्या स्थिरता पखवाड़े को सफल बनाएं। 


उन्होंने बताया कि इस साल पखवाड़े की थीम है-दो बच्चों में पर्याप्त अंतर से होगी मां की सेहत की पूरी देखभाल। इसके अलावा इस साल विश्व जनसंख्या दिवस का स्लोगन है-विकसित भारत की नई पहचान, परिवार नियोजन हर दंपति की शान। डॉ दूबे ने कहा कि यह थीम और स्लोगन तब तक सार्थक नहीं होंगे, जब तक कि प्रत्येक आशा कार्यकर्ता, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता समर्पित भाव से दंपति को सेवाओं के बारे में परामर्श नहीं देंगी और साधन की उपलब्धता नहीं कराएंगी।


महत्व बताती हैं पूनम

चरगांवा ब्लॉक के रामपुर चक उपकेंद्र की आशा कार्यकर्ता पूनम ने वर्ष 2006 से काम शुरू किया था। उनकी उम्र 36 वर्ष और उन्होंने खुद ही दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन अपना लिया । वह बताती हैं कि दंपति को परिवार नियोजन के सभी साधनों की जानकारी दी जाती है। खासतौर से जो गर्भवती होती हैं उनके प्रसव पूर्व जांच के दौरान ही परामर्श दिया जाता है ताकि प्रसव के बाद वह उचित साधन का चुनाव कर सकें। 


उन्हें बताया जाता है कि यह उनकी व बच्चे की सेहत के लिए बहुत जरूरी है। खुद के छोटे और नियोजित परिवार का उदाहरण देकर समझाना पड़ता हैं। ज्यादातर महिलाएं प्रसव पश्चात आईयूसीडी (पीपीआईयूसीडी) के लिए तैयार हो जाती हैं। जिन लोगों के परिजनों के मन में डर होता है कि कहीं खून की कमी न हो जाए या अन्य कोई नुकसान न हो, तो उनके परिजनों को ब्लॉक के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ धनंजय कुशवाहा और एचईओ मनोज कुमार से परामर्श दिलवाया जाता है। इस तरह पिछले साल वह 34 महिलाओं को पीपीआईयूसीडी की सेवा दिलवाने में सफल हो सकीं।


सलाह देती हैं नीलम

वर्ष 2008 से आशा कार्यकर्ता के रूप में सहजनवां ब्लॉक के बघौरा उपकेंद्र पर कार्य करने वाली नीलम गुप्ता (35) बताती हैं कि परिवार नियोजन के लिए कंडोम या गोलियों का इस्तेमाल करने वाले दंपति की समस्या को वह ध्यान से सुनती हैं। ज्यादातर महिलाओं की समस्या होती है कि वह गोली खाना भूल जाती हैं। कई बार दंपति कंडोम का इस्तेमाल भी नहीं कर पाते हैं और अनचाहे गर्भ का खतरा बना रहता है। ऐसी दिक्कतों का सामना कर रहे दंपति को वह त्रैमासिक अंतरा इंजेक्शन के बारे में बताती हैं। महिलाओं को साथ ले जाकर चिकित्सक से परामर्श दिलवाती हैं। 


जो महिलाएं जांच के बाद त्रैमासिक अंतरा के लिए फिट पाई जाती हैं और यह साधन अपनाने की इच्छुक होती हैं, उन्हें यह सेवा दी जाती है। इस तरह वह पिछले वर्ष अपने क्षेत्र में करीब 30 से 40 महिलाओं को त्रैमासिक अंतरा इंजेक्शन की 66 डोज लगवा चुकी हैं। वह बताती हैं कि इंजेक्शन लगने के बाद जिन महिलाओं का मासिक चंक्र हार्मोनल बदलाव के कारण प्रभावित होता है, उनके डर को दूर करने के लिए परिवार नियोजन परामर्शदाता से बात कराती हैं। उन्हें समझाती हैं कि यह सामान्य बदलाव है जो अपने आप ठीक हो जाएगा, इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। दूसरी महिलाओं को उदाहरण देती हैं और इस तरह उनके क्षेत्र में त्रैमासिक अंतरा इंजेक्शन पहली पसंद बन रहा है।


बना मददगार

पिपराईच ब्लॉक के सिधावल उपकेंद्र की आशा कार्यकर्ता नीता का जोर अधिकाधिक महिलाओं का सरकारी अस्पताल पर सुरक्षित संस्थागत प्रसव के लिए होता है। इसकी वजह से उनके क्षेत्र में लोग उन पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं। 30 वर्षीय नीता ने वर्ष 2006 से आशा के रूप में कार्य करना शुरू किया। वह बताती हैं कि गांव में गर्भवती को एंबुलेंस से अस्पताल ले जाना और सुरक्षित प्रसव करवाना उनके लिए लोगों के मन में सम्मान पैदा करता है। 


ऐसे में जब वह परिवार नियोजन के बारे में किसी भी दंपति से बात करती हैं तब न तो पति की तरफ से कोई बाधा आती है और न ही सास की तरफ से। पिछले वर्ष नीता ने 40 महिलाओं का संस्थागत प्रसव करवाया। गांव के लोगों के बीच भरोसा उनके लिए काम आया और एक ही वर्ष में वह जिले में सर्वाधिक 21 महिला नसबंदी करवाने में कामयाब हो सकीं। वह महिलाओं की नसबंदी के बाद भी गृह भ्रमण कर उनका हालचाल लेती हैं। टांका कटवाने में मदद करती हैं। इससे दूसरी दंपति भी उनके जरिये सेवा लेने के लिए उत्साहित रहते हैं।


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