सुनियोजित तरीके से चकबन्दी मामले में अन्नदाता का शोषण कर रहे हैं अधिकारी
बनकटी, बस्ती (बीपी लहरी) “मजबूरियों के पास बगावत की ताकत नहीं होती“। जिसका चकबन्दी अधिकारी अन्तिम अभिलेख नाजायज फायदा उठाते हुए जमीन सम्बन्धी एक मामले में मुफलिसी में जीवन गुजार रहे पीड़ित वृद्ध किसान को दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया है। प्रकरण राम फेर आदि बनाम किशन भगौती का है जिसमें नाम दुरुस्ती और हिस्साकस्सी का विवाद है।
इसमे जिला उप संचालक चकबंदी ने सहायक चकबंदी अधिकारी के आदेश 24 जनवरी 1998 व बन्दोबस्त अधिकारी चकबंदी द्वारा मामले में पारित आदेश 27 फरवरी 2015 को 19 जुलाई 2016 को सिरे से खारिज कर मामले को गुण दोष के आधार पर फैसला देने के लिए चकबंदी अधिकारी अन्तिम अभिलेख को आदेश दिया है। तभी से चकबंदी अधिकारी अन्तिम अभिलेख तारीख पर तारीख देकर सुलझाने की बजाय उलझाने का षड्यन्त्र कर मामले में अनावश्यक विलम्ब कर रहे हैं। जबकि देर से मिला हुआ न्याय भी अन्याय के बराबर माना जाता है। दुर्भाग्य तो यह है कि 27 वर्षों से न्याय देने के नाम पर पीड़ित अन्नदाता का प्रायोजित तरीके से हो रहा शोषण आज भी जारी है।
जो न्यायिक व्यवस्था का मज़ाक़ और ज़िम्मेदारों के गैर जिम्मेदाराना रवैये का सूचक माना जा रहा है। इस मामले में लाचार होकर किसान ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर जब मामले की शिकायत किया तो उस शिकायत से ख़फ़ा चकबंदी अधिकारी ने किसान को उसका विवाद हल करने का झांसा देकर अशिक्षित किसान से सादे पन्ने पर अंगूठा लगवाने के बाद फर्जी फीडबैक भेजकर शासन को ना सिर्फ गुमराह कर रहे हैं बल्कि पीड़ित को भी ठेंगा दिखाते हुए बोले जाओ अब तुम मेरा कुछ नहीं कर पाओगे, जो इस बात का प्रमाणित करता है कि चकबंदी अधिकारी और वाद प्रतिवादी का गठजोड़ है। आरोप तो यह भी है कि चकबंदी अधिकारी बगैर रिश्वत लिए वादों का निस्तारण करना नहीं चाहते जो उनकी निरंकुशता माना जा रहा है। इस मामले में चकबंदी अधिकारी अन्तिम अभिलेख एस.पी.सिंह से अनेक बार उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने काल रिसीव नहीं किया जो उनकी आदत में शामिल हैं।
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