संपादकीयः दलालों को रजिस्टर्ड क्यों नहीं कर देती सरकार ?Editorial: Why doesn't he government register brokers?
लेकिन बस्ती में स्थानीय प्रशासन दलालों पर मेहरबान है। सभी जानते हैं कि आरटीओ, अस्पताल, पुलिस थानों, बैंकों, रजिस्ट्री दफ्तर यहां तक कि कलेक्ट्रेट के कुछ पटलों पर भी बगैर दलाल काम नही होते। शासन के निर्देश पर स्थानीय प्रशासन की ओर से आरटीओ और रजिस्ट्री दफ्तर पर छापेमारी की जा चुकी है, आरटीओ में दलाल नही मिले, सूत्रों की माने तो रजिस्ट्री दफ्तर में कुछ लोग पकड़े गये लेकिन प्रशासन ने दरियादिली दिखाते हुये उन्हे छोड़ दिया। यह सवाल बार बार उठते हैं कि सरकारी दफ्तरों में दलालों के प्रवेश पर रोक क्यों नही लग पाती, उसकी वजह अफसर खुद ही हैं।
अपवाद को छोड़ दिया जाये कोई सरकारी महकमा नही जहां बगैर रिश्वत के काम हो जाये। जगह जगह पत्रकार और एण्टी करप्शन टीम सक्रिय हैं ये सभी को मालूम है। अफसर स्टिंग के पचड़ों से बचने के लिये रिश्वत की वसूली हेतु एक माध्यम बनाकर रखते हैं, उन्ही को हम दलाल कहते हैं। हालांकि पैसा खर्च होता है लेकिन दलालों के जरिये कठिन से कठिन काम भी आसान हो जाते हैं। दलालों के हाथों पैसा लेने से अफसरों को कोई जाखिम नही उठाना पड़ता। देखा जाये तो अधिककांश लोग पैसा देकर बेवजह की परेशानी और समय की बरबादी से बचना चाहते हैं और वे दलालों से संपर्क कर काम आसान कर लेते हैं।
परेशानी उनके लिये है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। अफसर उनसे ऐसे बात करते हैं जैसे वह कर्जा मांगने आया हो और वे अफसर न होकर जमींदार हों। जबकि वे इसी काम के लिये बैठाये गये हैं और सरकार से मोटी रकम लेते हैं जो कहीं न हिं जनता की जेब से आती है। हजारों परिवारों की रोजी रोटी दलाली की कमाई से चल रही है। सरकारी अस्पताल में जाइये तो दलाल प्राइवेट अस्पताल पहुचा देते हैं, आरटीओ में जो लाइसेंस 1000 रूपये में बन जाना चाहिये उसके लिये 5 हजार खर्च करने पड़ते हैं, रजिस्ट्री दफ्तर में स्टाम्प के हिसाब से दलाली अलग से फिक्स है।
पुलिस थानों में तो वैसे भी जाकर अच्छा भला आदमी कुत्ता बन जाता है, यहां भी दलाल सक्रिय हैं। हर जेब में स्मार्ट फोन हैं। इतने दलालों और तमाम सावधानियों के होते हुये भी रिश्वतखोरी के मामले आये दिन सामने आ जाते हैं। सरकार रोजी रोटी नही दे पा रही है, ऐसे में दलालों को एक प्रक्रिया के तहत रजिस्टर्ड कर देना चाहिये। उनकी गाढ़ी कमाई पर कम से कम 18 प्रतिशत जीएसटी लगानी चाहिये। इससे सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी, प्रशासन को अनावश्यक छापेमारी नही करनी पड़ेगी और आवेदक भी सरकारी दफ्तरों में पहले से मानसिक व आर्थिक रूप से तैयार होकर जायेंगे। इतना सबकुछ होने पर दलाल भी स्वाभिमान से जी पायेंगे उन्हे बार बार गिल्टी फील नही होगी कि गलत तरीके से कमाई करके वे अपना परिवार चला रहे हैं। संपादकीय समझ में आये तो शेयर जरूर करें।
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