संवेदनशील होती है राष्ट्र भाषा, हिन्दी में समाहित है ये विशेषता- डा0 रघुवंशमणि त्रिपाठी National language is sensitive, this characteristic is present in Hindi - Dr. Raghuvansh Mani Tripathi
उन्होने कहा हिन्दी हमे अपने आसपास की दुनिया का अहसास कराती है। इस भाषा को हम नैसर्गिक तरीके से सीखते हैं जैसे मछली पानी में स्वाभाविक रूप से तैरना सीख जाती है। मुख्य अतिथि ने कहा ग्लोबलाइजेशन के दौरा में भी हिन्दी का अपना महत्व कायम है। बड़े बड़े संस्थान बहुसंख्यक आबादी तक पहुंचने के लिये हिन्दी में विज्ञापन जारी कर रहे हैं, ये उनकी मजबूरी है। डॉ. रघुवंशमणि त्रिपाठी ने कहा राष्ट्र भाषा हमेशा संवेदनशील होती है और हिन्दी में यह विशेषता समाहित है। इस अवसर पर हास्य कवि डॉ. ताराचन्द तन्हा कृत ‘लट्ठमेय जयते’ और पत्नी चालीसा का लोकार्पण किया गया।
अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामकृष्ण जगमग ने कहा कि हिन्दी अब समूचे विश्व में प्रतिष्ठित हो रही है। वरिष्ठ पत्रकार दिनेश सांस्कृत्यायन ने कहा कि हिन्दी को इण्टर मीडिएट तक अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये। उन्होने ज्ञान, विज्ञान से हिन्दी को समृद्ध करने पर जोर दिया। डॉ. सत्यव्रत, आलोक त्रिपाठी, डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र, मजहर आजाद, प्रकाश चन्द्र गुप्ता, प्रदीप चन्द्र पाण्डेय, जयन्त कुमार मिश्र, नगर पालिका अध्यक्ष प्रतिनिधि अंकुर वर्मा, भावेष पाण्डेय, संध्या दीक्षित आदि ने सम्बोधित करते हुये हिन्दी के विकास यात्रा के विविध पक्षों पर विस्तार से प्रकाश डाला। संगोष्ठी के क्रम में विनोद कुमार उपाध्याय हर्षित, अर्चना श्रीवास्तव, रहमान अली ‘रहमान’, डॉ. अजीत श्रीवास्तव ‘राज’ आदि ने कविता और शायरी के माध्यम से हिन्दी दिवस के महत्ता पर प्रकाश डाला।
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