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सख्त कानूनों के बावजूद क्यों बढ़ रहे हैं महिला संबंधी अपराध

सख्त कानूनों के बावजूद क्यों बढ़ रहे हैं महिला संबंधी अपराध Why are crimes related to women increasing despite strict laws?



कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए अपराध की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना के बाद न्याय की मांग करते हुए डॉक्टरों ने पुरजोर प्रदर्शन किया। डॉक्टरों की मांग पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने पद से इस्तीफा देने की बात तक कह दी है। हालांकि इस पर डॉक्टरों का स्पष्ट कहना है कि उन्हें न्याय चाहिए न कि मुख्यमंत्री का इस्तीफा। 8 अगस्त को हुए इस रेप-मर्डर की घटना के बाद 3 सितंबर को पश्चिम बंगाल विधानसभा में अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024 पारित कर दिया गया है। इस कानून में 21 दिनों के भीतर जांच पूरा करने के साथ ही बलात्कार व हत्या करने वाले अपराधियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान है। 


फिलहाल राज्यपाल सी. वी. आनन्द बोस ने इस बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के पास विचारार्थ भेजा है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब ऐसी घटना के बाद कोई सरकार कड़े‌‌ कानून बनाने की ओर अग्रसर हुई है। इससे पहले निर्भया गैंगरेप व‌ मर्डर के बाद पॉक्सो एक्ट लाया गया। इसके बाद आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में 27 नवंबर 2019 को‌ 27 वर्षीय वेटनरी डॉक्टर के साथ रेप के बाद मर्डर का मामला सामने आया। इसे ’दिशा रेप केस’ नाम दिया गया। इस मामले में चार आरोपी गिरफ्तार हुए और इनकाउंटर में मारे भी गए। हालांकि यह इनकाउंटर विवादों में रहा। इस घटना के बाद आंध्र प्रदेश की सरकार ने भी रेप व गैंगरेप मामले में सख्त सजा का प्रावधान करते हुए ’दिशा’ बिल पेश किया था जो अब तक कानून की शक्ल नहीं ले सका है। 


इसी साल केन्द्र सरकार के द्वारा भी ’भारतीय न्याय सहिंता’ के तहत तीन नये कानून लाये गये हैं। इसके मुताबिक रेप के अपराधी को कम से कम 10 साल, गैंगरेप के अपराधी को कम से कम 20 साल व नाबालिग से गैंगरेप करने वाले अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा दिये जाने का प्रावधान है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि जहां एक तरफ महिला संबंधी अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कानून बन रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अपराधियों के हौसले भी बुलंद होते हुए दिख रहे हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर 16 मिनट में एक महिला हैवानियत का शिकार हो रही है। इसके साथ ही रेप के मामलों में कनविक्शन रेट महज 27 प्रतिशत है। 


महिलाओं के विरुद्ध बढ़ रहे अपराधों के बीच लोगों के मन में लम्बे समय से यह सवाल भी उठ रहा है कि सख्त कानून होने के बावजूद महिला संबंधी अपराध क्यों बढ़ रहा है। आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? ऐसा देखा गया है कि जब कभी देश के किसी कोने से महिलाओं पर अत्याचार की खबर आती है तो एक आक्रोश का वातावरण पैदा हो जाता है। सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए लोग न्याय की मांग पर अड़ जाते हैं। न्यूज़ चैनलों पर डिबेट शुरू हो जाता है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी सामने आती हैं। कुछ लोग अपराध का कारण पितृसत्तात्मक सोच को मानते हैं तो कहीं जाति के आधार पर भेद-भाव व महिलाओं का अशिक्षित होना इसका बड़ा कारण माना जाता है। 


इन कारणों के बीच सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर जांच को प्रभावित करना भी एक बड़ा कारण है जो अपराधियों के हौसले को बुलंद करने की बड़ी वजह बन‌ता दिख रहा है। पूर्व में हुए एक-एक मामले को उठाकर देखा जाए तो जांच को प्रभावित करने के कई प्रयास सामने आये हैं। अगर 4 जून 2017 को हुए उन्नाव रेप केस की बात की जाये तो इसमें जांच को प्रभावित करने का प्रयास साफ दिखाई देता है। इसमें पीड़िता के पिता की हत्या कर दी गई। जब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पीड़िता की बहन ने आत्मदाह की कोशिश की तब यह मामला संज्ञान में आया। इसके बाद मामले की जांच को जब प्रदेश के बाहर भेजा गया तब जाकर इसमें सजा हुई। 


बात अगर सितंबर 2020 में हुए हाथरस गैंगरेप की करें तो आधी रात में ही पीड़िता के शव का अन्तिम संस्कार कर दिया गया था। इसी प्रकार नवंबर 2019 में हैदराबाद में हुए ’दिशा रेप-मर्डर केस’ में भी देखा गया। इस मामले में गिरफ्तार किये गये चारों आरोपियों का इनकाउंटर बड़े विवादों के घेरे में आ गया। इस इनकाउंटर को सुप्रीम कोर्ट के जांच आयोग ने फर्जी करार दिया था। अब कोलकाता की घटना में भी सबूत मिटाने व जांच को प्रभावित करने की बात सामने आ रही है। ऐसा आरोप है कि अस्पताल प्रशासन की ओर से पीड़िता द्वारा आत्महत्या करने की बात कही गई। रेप होने की बात से इंकार किया गया व परिजनों को पीड़िता तक पहुंचने नहीं दिया गया। इन बातों से यह स्पष्ट है कि निष्पक्ष जांच ना होना आपराधिक मानसिकता को बढ़ावा दे रहा है। यह सवाल भी उठता है कि महिला संग अपराध का मामला सामने आने पर सच सामने लाने के बजाय पर्दा डालने का प्रयास क्यों होता है। क्या शासन-प्रशासन की नजर में महिलाओं की सुरक्षा व उनके साथ न्याय की बात करना सिर्फ कागजों व चुनावी सभाओं तक ही सीमित है? अब समय आ गया है कि इन बातों पर गंभीरता से विचार किया जाये। साथ ही देश वचनबद्ध हो कि ऐसी घटना दोबारा ना हो। लेखक: पत्रकार अथर्व श्रीवास्तव

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