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बस्ती की रामलीला: भगवान राम की चरण पादुका लेकर भारी मन से अयोध्या लौटे भरत

बस्ती की रामलीला: भगवान राम की चरण पादुका लेकर भारी मन से अयोध्या लौटे भरत Basti's Ramlila: Bharat returned to Ayodhya with a heavy heart carrying the feet of Lord Ram

बस्ती, 08 नवम्बर। सनातन धर्म संस्था, बस्ती द्वारा आयोजित श्री रामलीला महोत्सव में पांचवे दिन का शुभारंभ प्रभु श्री राम जी की आरती के साथ प्रारम्भ हुआ। आरती में मुख्य रूप से कर्नल के सी मिश्र, सेंट जोसेफ की प्रधानाचार्य एंजलीना, अशोक शुक्ल, राजेश मिश्र, सत्यप्रकाश सिंह, बुद्धिसागर दूबे, आनन्द आर्या, भावेष पाण्डेय, ओमकार मिश्र, राजकुमार, रंजना यादव, प्रीती सिंह, पूनम सिंह, विवेक मिश्र, धर्मराज, शक्ति संगठन की पूजा, ज्योति सम्मिलित हुए। 


सेंट जोसेफ स्कूल के छात्र छात्राओं द्वारा की जा रही लीला में दिखा कि सुमन्त्र जी जो प्रभु श्री राम चन्द्र जी के साथ वन इस उद्देश्य से गये थे कि वे प्रभु श्री रामचन्द्र को मना कर वापस अयोध्या लिवा लाएंगे किंतु मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के संकल्प के आगे बिना साथ लिए भारी मन से अयोध्या लौट रहे थे किन्तु मार्ग में ही व्याकुल होकर रथ सहित रुक जाते हैं। निषाद राज द्वारा सुमंत्र को समझाकर अयोध्या पहुँचाया जाता है। जब सुमन्त्र द्वारा महाराज दशरथ को यह पता चलता है कि प्रभु श्री राम अयोध्या वापस नही आ रहे हैं।



वो विलाप कर धरती पर गिर पड़ते हैं और सबको बताते हैं कि किस प्रकार एक बार अनजाने में ऋषि शांतनु के पुत्र श्रवण कुमार की मृत्यु दशरथ जी के शब्द भेदी बाण से हो जाती है जिससे ऋषि शान्तनु व ज्ञानवती ने उन्हें श्राप दिया था कि वे भी पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग देंगे, मेरा वो समय आ गया है और विलाप करते करते राम राम कहते हुये अपने प्राण त्याग देते हैं। भरत गुरु वशिष्ठ के बुलावे पर भरत जी तत्क्षण अयोध्या वापस आते हैं और प्रभु श्री राम के 14 वर्षों के वनवास का समाचार और राम के वियोग में पिता दशरथ के प्राण त्यागने से मूर्तिवत हो जाते हैं और  वो माता कैकेई पर भयंकर कुपित हुए। 


दासी मंथरा का शत्रुघ्न कूबड़ तोड़ देते हैं। पिता का अंतिम संस्कार कर भरत जी गुरु वशिष्ठ जी, माताओं समेत प्रभु को मानने वन की ओर चल देते हैं । निषादराज गुह के सहयोग से भरत की प्रभु से भेंट होती है। भरत के करुण क्रंदन से श्री राम का मन द्रवित हो उठा। वशिष्ठ जी द्वारा पिता की मृत्यु का समाचार सुन प्रभु श्री राम , लक्ष्मण व सीता जी सहित शोक में डूब जाते हैं। गुरु वशिष्ठ प्रभु को समझाते हैं कि उनके बिना अयोध्या अनाथ है कृपया वे पुनः राज सम्हालें। प्रभु बताते हैं रघुकुल रीत सदा चली आयी। प्राण जाएं पर वचन न जाई।। पिता के वचनों का मान सर्वोपरि हैं। 


तब वे भरत को राज धर्म की शिक्षा दे वापस लौट जाने की आज्ञा देते हैं भरत लौटने से पूर्व प्रभु के खड़ाऊं मांगते हैं जिसे प्रभु के वापस आने तक सिंहासन पर रख वे राज्य का संचालन करेंगे। व्यास जी द्वारा राम भक्त ले चला रे राम की निशानी, शीश पे खड़ाऊं अँखियों में पानी गीत के साथ हुए मंचन मे जब भरत जी सभी के बीच से खड़ाऊं लेकर निकलते हैं तो पूरे पंडाल में उपस्थित सभी के नेत्र सजल कर दिये। व्यास राजा बाबू पाण्डेय आगे की लीला का सूत्रपात करते हुये दर्शकों से कहते हैं की-जिन्ह हरि भगति हृदयँ नहि आनी। जीवत सव समान तेइ प्रानी।। 


उन्होंने कहा की जो भी मनुष्य श्री हरि की भक्ति को अपने हृदय मे नही धारण करता वह जीवित रहते हुये भी शव के समान है। श्री रामलीला महोत्सव में अगले भाग में सावित्री विद्या विहार के बच्चों द्वारा जयंत कथा व अत्रि- अनुसुइया उपदेश, सरभंग उद्धार, विराध वध, सुतीक्षण जी व मुनि अगस्त जी से भेंट, पंचवटी निवास तक की लीला का मंचन किया गया। स्कूल के बच्चों द्वारा अभिनीत इस लीला में इंद्र पुत्र जयंत द्वारा कौवे का वेश धर कर सीता जी के चरण पर चोंच मारने। इसके बाद माता अनुसुइया द्वारा सीता जी को पतिव्रत धर्म के पालन करने की शिक्षा दी गई, मार्ग मे विराध नामक असुर का वध भगवान द्वारा किया गया और सरभंग ऋषि का उद्धार करते हुये, सुतीक्ष्ण जी के साथ अगस्त जी के आश्रम मे विश्राम करते हैं। 


अस्थियों के समूह को देखकर भगवान प्रण करते हैं की अब इस पृथ्वी को निशाचरों से हीन कर दूंगा। वहाँ से अगस्त जी द्वारा सुझाये गये स्थान पंचवटी पहुंचते हैं जहाँ पर गिद्ध जटायु से भेंट करते हैं और पर्णकुटी बनाकर वहाँ निवास करते और लक्ष्मण की को ज्ञान और भक्ति का उपदेश देते हैं। मंचन के समय शुशील मिश्र, अखिलेश दूबे, कैलाश नाथ दूबे, रमेश सिंह, सुरेंद्र पांडेय, अनुराग शुक्ल, मनीष सिंह, बुद्धिसागर दूबे, चंदन सिंह, भोलानाथ चौधरी, अभिनव उपाध्याय, अंश श्रीवास्तव, डॉ दुर्गेश पाण्डेय, प्रथम तुलस्यान, हरि किशन पांडेय, डॉ रोहन दूबे, अमन श्रीवास्तव, अभय त्रिपाठी, अंकित त्रिपाठी, उर्मिला त्रिपाठी, उमेश चंद्र त्रिपाठी, रिया सिंह, मीना त्रिपाठी, मुक्तेश्वर नाथ आजाद, शिवम, हरीश त्रिपाठी, उमाशंकर सिंह, आचार्य करूणाकर, आचार्य अम्बिकेश्वर दत्त ओझा, बृजेश पाण्डेय जी आदि सहित पूरा पांडाल भरा रहा।

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