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नोयडा में हजारों करोड़ के घोटाले पर सीबीआई की नज़र

नोयडा में हजारों करोड़ के घोटाले पर सीबीआई की नज़र
राज्य संवाददाता, दिल्ली, एनसीआर (ओ पी श्रीवास्तव)।
उच्च न्यायालय प्रयागराज ने नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण जिला गौतम बुद्ध नगर में 9000 करोड़ रुपये के महा घोटाले में सीबीआई और ई डी को जांच करने का आदेश पारित किया है। इस आदेश से नोएडा प्राधिकरण में भूकंप आ गया है। यदि ठीक से जांच हो गई तो अच्छे-अच्छों को जेल यात्रा करनी पड़ेगी।


इस वजह से नोएडा के अधिकारियों एवं कर्मचारियों में महा हड़कंप मच गया है। आज रविवार को छुट्टी के दिन भी अधिकारियों और कर्मचारियों ने आफिस में बैठकर सम्बंधित फाईलों को तलाशने का काम किया। उल्लेखनीय है कि नोएडा अथॉरिटी की बहुआयामी परियोजना स्पोर्ट्स सिटी से जुड़े अलग-अलग काम में वर्ष 2007-08 से लेकर 2015-16 तक नोएडा प्राधिकरण के 100 से अधिक कर्मचारी और अधिकारियों ने बहती गंगा में डुबकी लगाई और करोड़ों का वारा-न्यारा न्यारा कर अथॉरिटी को खूब दूहा।


स्पोर्ट्स सिटी से जुड़े परियोजना में अलग-अलग काम में वर्ष 2007-08 से लेकर 2015-16 तक नोएडा प्राधिकरण के 100 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी तैनात रहे। ये सब सन्देह के दायरे में है और जांच के दायरे में आएंगे। इस सम्बन्ध में विश्वसनीय सूत्रों  ने बताया कि स्पोर्ट्स सिटी की परियोजनाओं से जुड़े 10 मामलों में उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय ने कुछ मामलों में सीबीआई को सीधे जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर जांच के आदेश दिए हैं।


उच्च न्यायालय प्रयागराज ने स्पोर्ट्स सिटी के लिए रियायती दरों पर जमीन देने, नियमों की अनदेखी कर नक्शा पास करने, निर्माण के दौरान निगरानी तंत्र ठीक नहीं करने, डिफॉल्टर और नियम तोड़ रहे बिल्डरों के भूखंडों को उप विभाजन की अनुमति देने और बकाया लेने के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं करने को लेकर प्राधिकरण की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं और ऐसे अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर सख्त कानूनी कार्रवाई करने का आदेश दिया है। सूत्रों ने बताया कि अब सीबीआई की जांच के जद में ग्रुप हाउसिंग, नियोजन विभाग और वित्त विभाग के अधिकारी-कर्मचारी बुरी तरह से लपेटे में आएंगे। 


परियोजना में बिल्डरों को जमीन देने से लेकर नक्शा पास करने की प्रक्रिया बड़े स्तर पर की गई है। उच्च न्यायालय के आदेश से यहां पूर्व में तैनात अफसरों के होश उड़ गए हैं और वे नोएडा प्राधिकरण के सेक्टर छह में स्थित मुख्य कार्यालय में आकर पत्रावलियां को उलट पलट रहे हैं तथा बड़े बड़े वकीलो से राय मशविरा भी ले रहे हैं। दूसरी तरफ सूत्रों ने इस संबंध में पत्रावलियों के साथ छेड़छाड़ की सम्भावना से इंकार नहीं किया है। तत्कालीन अधिकारियों ने प्राधिकरण के मौजूदा अधिकारियों से संपर्क कर कोर्ट के आदेश की कॉपी ली है और बातचीत की। बताया जाता है कि नोएडा प्राधिकरण के सी ई ओ डॉ. लोकेश एम ने भी विधि विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर हर आदेश को अलग-अलग रूप से तैयार कर नोट बनाने के निर्देश दिए।


उल्लेखनीय है कि नोएडा के गौर स्पोर्ट्स परियोजना के बिल्डर को खेल सुविधाएं विकसित करनी थीं, जो उसने नहीं की। बिल्डर को आदेश दिया गया है कि खेल सुविधाएं विकसित करने पर जो धन खर्च किया जाना था, उस राशि को मौजूदा दर के हिसाब से प्राधिकरण में जमा करें। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्राधिकरण ने 16 अगस्त 2004 को स्पोर्ट्स सिटी विकसित करने का फैसला लिया था। कंपनियों ने जमीन ले ली, लेकिन कोई विकास नहीं किया। इस सम्बन्ध में याची कंपनी ने 1080 फ्लैट में से केवल 785 फ्लैट बेचे और निर्माण बंद कर दिया। पांच साल में प्रोजेक्ट पूरा करना था। कंपनी सुविधाएं देने में विफल रही।


इस सम्बन्ध में डॉ. लोकेश एम, सीईओ नोएडा प्राधिकरण ने कहा, ’’हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जा रहा है। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।’’इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि स्पोर्ट्स सिटी मामले में नोएडा के अधिकारी, बिल्डर या अन्य जो कोई भी शामिल है, के खिलाफ सीबीआई परिवाद दर्ज कर सीधे कार्रवाई करे। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि बिल्डर कंपनियों द्वारा हड़पे गए धन का पता लगाना जरूरी है, इसलिए ई डी इसकी जांच करे। हाईकोर्ट ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही में बैलेंस शीट का सत्यापन कर कार्रवाई करने का भी आदेश दिया है। 


हाईकोर्ट ने कहा है कि घर खरीदने वालों का हित सर्वोपरि है, इसलिए उसकी सुरक्षा की जानी चाहिए। साथ ही बोगस लेन-देन की भी जांच की जाए। माननीय कोर्ट ने कहा कि यदि याची कंपनियों को राहत दी जाती है तो यह जालसाजी को स्वीकार करने जैसा होगा। जो कोर्ट ऐसा नहीं कर सकता। उक्त आदेश जस्टिस एम सी त्रिपाठी एवं जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने मेसर्स एरिना सुपर स्ट्रक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड एवं मेसर्स सिक्वेल बिल्डकॉन प्राइवेट लिमिटेड की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि कैग की रिपोर्ट में बड़े घोटाले का खुलासा हुआ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पोर्ट्स सिटी परियोजना में फंसे खरीदारों को राहत देने की कोशिश की है। 


बिल्डरों को आदेश दिया गया है कि वह प्राधिकरण का बकाया दें, जिससे रजिस्ट्री हो सके। स्पोर्ट्स सिटी परियोजना के लिए बिल्डरों को सस्ते रेट पर जमीन दी गई थी। इसका मकसद था कि खेल सुविधाएं अधिक से अधिक विकसित की जाएंगी। इस परियोजना के लिए आवंटित कुल जमीन में से 70 प्रतिशत हिस्से में खेल सुविधाएं, 28 प्रतिशत पर ग्रुप हाउसिंग और दो प्रतिशत हिस्से में व्यावसायिक संपत्ति को बनाया जाना था। बिल्डरों ने प्राधिकरण के लालची और बेईमान अधिकारियों से साठगांठ कर परियोजनाओं के अधिक हिस्से में खेल सुविधाओं के बजाए मुनाफे के लिए फ्लैट बना कर बेच दिया। स्पोर्ट्स सिटी की परियोजना चार भूखंडों के रूप में लाई गई थी। इनमें सेक्टर-78, 79 और इसी में छोटा हिस्सा सेक्टर-101 था। 


इन दो के अलावा सेक्टर-150 और 152 में यह योजना लाई गई। इस योजना में चार बिल्डरों को भूखंड आवंटित किए गए थे। इन बिल्डरों ने मुनाफे के लिए इन भूखंडों को आगे 84 छोटे-छोटे टुकड़ों में बेच दिया। लेकिन यहां पर इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि धोखाधड़ी कर करोड़ो अरबों कमाने वाले बिल्डरों को बीते सालों में स्पोर्ट्स सिटी से जुड़ी दो परियोजनाओं के मामले में हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में राहत प्रदान दी थी। ऐसे में अन्य बिल्डरों को भी लगा कि उनको भी राहत मिल सकती है। इसी उम्मीद से बाकी बिल्डरों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन बिल्डरों को यहां राहत नहीं मिल पाई और दांव उल्टा पड़ गया। इस मामले में जांच एजेंसियों ने भी प्राधिकरण पर डेरा डाल रखा है। सूत्रों का कहना है कि शुक्रवार और शनिवार को सीबीआई के अधिकारियों ने नोएडा अथॉरिटी कार्यालय जाकर स्थिति  का जायजा लिया है।

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