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स्कूलों की मनमानी के शिकार हो रहे अभिभावक, जिला प्रशासन, विभागीय अफसरों ने साधा मौन

स्कूलों की मनमानी के शिकार हो रहे अभिभावक, जिला प्रशासन, विभागीय अफसरों ने साधा मौन
बस्ती, 14 अप्रैल (अशोक श्रीवास्तव की समीक्षा)।
निजी स्कूलों में छात्र छात्राओं का प्रगति पत्र बांटने के बाद नये सत्र का शुभारम्भ हो चुका है। अभिभावक और बच्चे बेहतर स्कूल की तलाश मे हैं जहां अच्छी, संस्कारयुक्त शिक्षा मिले और लूटपाट कम हो। शिक्षा जहां पूरी तरह व्यापार का रूप ले चुका हो वहां यह दिवास्वप्न है। स्कूलों में खूब जमकर लूट मची है। 


एडमिशन, नई किताबों, स्टेशनरी और यूनिफार्म के नाम अभिभावकों की जेब ढीली हो रही है और स्कूलों के संचालक मालामाल हो रहे हैं। अनेकों शिकायतें मिल रही हैं जहां एडमिशन और तरह तरह की फीस के नाम मोटी रकम वसूल की जा रही है। किताबों और यूनिफार्म को अपने चहेते दुकानों से खरीदने का मजबूर किया जा रहा है। एक दशक पहले अभ्यास पुस्तिकाओं पर जितना खर्च आता था उतने में एक किताब मिल रही है। 8 वीं कक्षा के छात्र को 8 से 9 हजार रूपये केवल किताब कापी पर खर्च करने पड़ रहे हैं। 


स्कूल बैग, यूनिफार्म, एडमिशन फीस, कनविन्स आदि का जोड़कर एक बच्चे पर लगभग 15 हजार रूपया खर्च आ रहा है। जिसके दो बच्चे हैं और परिवार मिडल क्लास है तो मार्च अप्रैल के महीने में उसे कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ेगा। इस पूरे मामले में जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के अफसर धृतराष्ट्र के किरदार मे हैं या बेबस और लाचार है। अभिभावक बलि का बकरा बन रहा है। एक स्कूल की ताजा जानकारी सामने आई है। यहां 8वीं कक्षा के छात्र किताबें 8,700 रूपये में मिली हैं। गणित की किताब 725 रूपये की है। होमवर्क डायरी 350 रूपये की है। अंग्रेजी की तीन पुस्तकें 1404 रूपये की है। कापी के लिये अलग से 1500 रूपया खर्च करना होगा। 


एडमिशन व अन्य फीस अलग से देना है। ये महज एक बानगी है। कमोवेश यही स्थिति सभी स्कूलों की है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मिडल क्लास अपने बच्चों को कहां पढ़ाये। हैरानी इस बात की है कि पूरा मामला जिला प्रशासन के सज्ञान मे है लेकिन कार्यवाही या समाधान ढूढ़ने की इच्छाशक्ति किसी में नही है। शिक्षा विभाग के अफसर खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, ऐसे में उनके भी कितना नैतिक साहस होगा इस प्रकार की समस्याओं का समाधान ढूढ़ने में आप कल्पना कर सकते हैं।


क्या कर सकते हैं आप

आम लोगों की धारणा है कि हमे लूटा जा रहा है तो हम भी मौका मिलने पर लूटेंगे। अपवाद छोड़कर पूरे समाज की मानसिकता यही बन गई है। हर आदमी अवसर की तलाश मे है। नतीजे भ्री सामने हैं। कोई सेवा या वस्तु क्रय करते समय आप मोल भाव नही कर सकते। सबकुछ एमआरपी पर बेंचने का चलन हो गया है। दुकानदार से कहो कुछ कम कर लो, वह फटाक से कहता है आप कहो सरकार पेट्रोल डीजल गैस के दाम कम कर दे। मसलन सरकार मनमाना टैक्स ले रही है, दुकानदार मनमाना दाम ले रहे हैं इसलिये आप भी लीजिये मौका मिलने पर। लेखपाल हर काम मे पैसा ले रहा है, डाक्टर मोटी फीस लेकर परामर्श दे रहा है, तो आप सवाल क्यों उठाते हैं, वो भी तो अपने बच्चों को पढ़ाकर इंजीनियर डाक्टर बनायेगा।


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