सिद्धनाथ प्रकरण में पांच माह बाद भी पुलिस खाली हाथ, मिशन शक्ति की सार्थकता सिद्ध करने के लिये नये सिरे से सोचे पुलिस
Five months later, the police are still empty-handed in the Siddhanath case. Police must rethink Mission Shakti to prove its effectiveness.
बस्ती, 22 अक्टूबर। जिले में मिशन शक्ति के तहत अनेक कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। कोई थाना, चौकी, नहीं बचा जहां बेटियों के आत्मसम्मान व स्वाभिमान को ऊंचा करने के लिये कार्यक्रम न हुये हों। अनगिनत स्कूल कालेजों, गांव की चौपालों पर पुलिस विभाग की ओर से ऐसे आयोजन हुये जो निःसंदेह महिलाओं को गर्व से सिर उठाकर जीवन जीने का साहस प्रदान कर रहे हैं।
लेकिन लालगंज थाना क्षेत्र के सिद्धनाथ गांव की घटना भूलती नही है जहां पांच वर्ष की मासूम बच्ची की नृशंस हत्या व रेप कर उसे झाड़ी में फेंक दिया गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ऐसी आई जिसे सार्वजनिक करने लायक ही नहीं। क्रूरता की हद तक गये थे दरिंद। हत्यारा पांच माह बाद भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं और मामला ठंडे बस्ते मे है। इससे पुलिस की सक्रियता ़और पारदर्शिता पर सवाल उठना लाजिमी है। जनता इसे पुलिस की बड़ी नाकामी मान रही है। सनद रहे मासूम का रेप व नृशंस हत्या के बाद पुलिस अधीक्षक ने स्वयं घटनास्थल का निरीक्षण कर कई टीमों का गठन किया था। अभी तक कोई नतीजे पर नही पहुंचा है।
घटना 18 मई की है और रोंगटे खड़े कर देने वाली हैवानियत को अंजाम देने वाले आजाद घूम रहे हैं। यह कभी भुलाया नही जा सकता है। घटना के बाद जांच पड़ताल और पूछताछ के नाम पर पुलिस ने गांव में ऐसी दहशत फैलाया था कि ग्रामीणों के संगे सम्बन्धी रिश्तेदार भी गांव में आने से गुरेज करने लगे थे। क्षेत्रीय जनों का आरोप है कि यदि किसी मन्त्री विधायक व सांसद व अधिकारी के सगे सम्बन्धी की हत्या हुई होती तो अब तक लोकसभा व विधानसभा सभा में हंगामा हो जाता। लेकिन विपन्न परिवार की मासूम बेटी के साथ बेरहमी के साथ हुऐ रेप और हत्या पर पुलिस की कई टीमें नाकारा साबित हो रही हैं। यह निन्दनीय है।
बताया गया कि डीएनए रिपोर्ट आने पर मामले का खुलासा हो सकता है। पता नही रिपोर्ट आई या नहीं लेकिन रहस्य आज भी कायम है। घटना के सीबीआई जांच की भी मांग उठी थी। लेकिन एक सामान्य परिवार के साथ हुये इस भयानक हादसे पर किसी सांसद विधायक ने आवाज नही उठाई। सच्चाई यह है कि पांच साल के उस मासूम बच्ची की चीखें आज भी उन्हे चैन से सोने नही दे रही हैं जिन्होने न केवल अपनी बच्ची खोया है बल्कि हालात ने उनसे सिंर उठाकर जीने का हक भी छीन लिया है। क्या इतनी गंभीर वारदात को अंजाम देने वाला सिस्टम पर भारी है।
क्या सीबीआई व अन्य संस्थायें विपक्षी पार्टियों व उनके नेताओं को डराने के लिये हैं। बेहतर होता सिद्धनाथ प्रकरण का सच सामने आता जो हजारों लाखों बेटियों को इस विश्वास से भर देता कि हैवानियत करने वाला अपराध पर चाहे जितनी परदेदारी करे पुलिस उसे ढूढ़ निकालेगी और सिस्टम उसे ऐसी सजा देगा कि दूसरा कोई ऐसी घटना को अंजाम देने से पहले सौ बार सोंचने को मजबूर होता। बेटियों को एक दिन का डीएम, एसपी बनाने से उनका स्वाभिमान नही ऊंचा होगा बल्कि ऐसी घटनाओं का खुलासा करके सिस्टम को बेटियों का विश्वास जीतना होगा, तब जाकर आधी आबादी को पूरा हक मिल पायेगा।
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