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मासूम बच्ची ने बदल दी रिया सिंह की सोच, 250 से अधिक लावारिश लाशों का कर चुकी हैं अंतिम संस्कार



मासूम बच्ची ने बदल दी रिया सिंह की सोच,
250 से अधिक लावारिश लाशों का कर चुकी हैं अंतिम संस्कार

नई दिल्ली (निहारिका)। राजधानी दिल्ली मे उत्कृष्ट समाजसेवा से अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली रिया सिंह को कौन नही जानता। लेकिन ऐसी पर्सनालिटी के बारे में समूचे देशवासियों को जानना चाहिये। छिटपुट समाजसेवा कर समाचार माध्यमों मे सुर्खियां बटारोने वालों को रिया सिंह की जीवनशैली और उनकी सोच से सीख लेनी चाहिये। मानवता की मिसाल, समाज की सोच को बदलने वाली, और मृत्यु के बाद सम्मान का अधिकार दिलाने वाली यह कहानी है दिल्ली की रिया सिंह की, जो पिछले एक साल में हरिद्वार जाकर 250 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं।


पाँच साल की बच्ची ने बदल दिया जीवन

इस प्रेरणा की शुरुआत एक ऐसी घटना से हुई जिसने रिया के दिल और सोच दोनों को हिला दिया। एक दिन दिल्ली में एक रिक्शा चालक ने देखा कि 5 साल की एक मासूम बच्ची अपने पास पड़ी अपनी माँ की मृत देह के पास इस बात से बेफिक्र होकर खेल रही थी, कि उसके सिर से मां का आंचल हमेशा के लिये हट गया है। रिक्शा चालक पास गया तो पता चला कि महिला की मौत हो चुकी है। उसने तुरंत बच्ची और शव को शमशान घाट पहुँचाया।


लेकिन वहाँ एक और दर्दनाक दृश्य सामने आया। पंडितजी ने अंतिम संस्कार के लिए पैसे माँगे, तब उस मासूम बच्ची ने अपनी तोतली आवाज़ में कहा, “मेरे पास तो पैसे नहीं हैं।” यह सुनकर रिक्शा चालक ने किसी तरह उस महिला का अंतिम संस्कार कर दिया और बच्ची को साथ लेकर चले गए।


रिया पहुँची शमशान घाट, लेकिन देर हो चुकी थी

जब यह घटना रिया सिंह को पता चली, तो वह सीधे शमशान घाट पहुँचीं। उन्होंने पंडितजी से पूरी बात पूछी और उस बच्ची के बारे में जानकारी माँगी। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। पंडितजी ने बताया कि बच्ची को रिक्शा चालक अपने साथ ले गया, और अब कोई नहीं जानता कि वह बच्ची कहाँ है। रिया को यह बात अंदर तक चुभ गई। क्योंकि रिया एक अनाथ आश्रम भी चलाती हैं, और उन्हें लगा कि “अगर वह बच्ची मेरे पास होती, तो मैं उसे एक सुरक्षित और प्यार भरा जीवन दे सकती थी।”


उसी पल लिया जीवन का सबसे बड़ा निर्णय

उस घटना ने रिया की सोच बदल दी। उसी समय उन्होंने संकल्प लिया, “अब से कोई भी लावारिस शव ऐसे नहीं पड़ा रहने दूंगी। मैं स्वयं अंतिम संस्कार करूँगी। और अगर किसी मृतक के पीछे बच्चे या बुज़ुर्ग हों, तो उन्हें अपने आश्रम में जगह देकर उन्हे सुरक्षित जीवन दूंगी।“


परंपराओं को चुनौती, मानवता को सम्मान

समाज जहाँ आज भी महिलाओं के श्मशान घाट जाने पर सवाल उठाता है, वही रिया बिना किसी भय, संकोच या सामाजिक दबाव के शवों को कंधा देती हैं, लकड़ियाँ सजाती हैं, मंत्र पढ़ती हैं और अंतिम विदाई करती हैं। रिया ने साबित किया कि सम्मान का अधिकार हर इंसान का है, चाहे वह जीवित हो या मृत। इस नेक काम में रिया अकेली नहीं हैं, हेमंत कुमार जी उनकी मुख्य टीम के सदस्य हैं, जो हर कदम पर उनकी मदद करते हैं। इसके अलावा बहुत से लोग अब उनके इस अभियान से जुड़ रहे हैं।


रिया का संदेश

“आप भी इस मानवता के मिशन का हिस्सा बन सकते हैं। कोई भी मदद छोटी नहीं होती। एक कदम बदल सकता है एक जिंदगी।” इंसानियत की नई मिसाल बन चुकी रिया सिर्फ अंतिम संस्कार ही नहीं करतीं, बल्कि अनाथ बच्चों, अकेले छोड़े गए बुज़ुर्गों, और लावारिस व्यक्तियों को अपने आश्रम में सुरक्षित जीवन देती हैं। रिया अपने इस कार्य के लिए सबसे अधिक आभार अपने माता-पिता और पति का करती हैं। वे कहती हैं, “मैं आज जो भी कर पा रही हूँ, वह मेरे परिवार की वजह से। उन्होंने मुझे न केवल समझा, बल्कि इस नेक काम को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।” मीडिया दस्तक भारत की इस महान बेटी को शत-शत नमन करता है। समाज को बदलने के लिए आवाज़ नहीं, बस एक सच्चा दिल और साहस चाहिए, जो रिया सिंह के पास है।

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