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नही बदल रहा व्यवहार, आईजीआरएस पर अपनी पीठ थपथपा रही नोयडा पुलिस

नही बदल रहा व्यवहार, आईजीआरएस पर अपनी पीठ थपथपा रही नोयडा पुलिस
नोएडा 12 फरवरी (ओ पी श्रीवास्तव)। उत्तर प्रदेश में आईं जी आर एस पोर्टल आदि पर दर्ज शिकायतों के मामले में भले ही गौतमबुद्ध नगर जिले की पुलिस प्रथम स्थान हासिल कर खुद ही अपनी पीठ थपथपा रही हैं, लेकिन आम जनता के साथ पुलिस का व्यवहार और शिकायतों को सुने जाने का तरीका वहीं दशकों पुराना है।



कुछ भी नहीं है। सिवाय चेहरे के। आम जनता अभी भी धक्के खा रहीं है। एक उदाहरण से इसे समझने की कोशिश करते हैं। बिहार राज्य के गोपालगंज जिले के रहने वाले बबलू कुमार तिवारी पुत्र बृज किशोर तिवारी नोएडा के सेक्टर 65 के बी ब्लॉक में स्थित एक कम्पनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं। वे नौकरी कर अपना व परिवार का पेट पालते हैं। कम्पनी में कुछ विवाद हो जाने के कारण उन्होने त्याग पत्र दे दिया। श्री तिवारी के अनुसार कम्पनी ने उनका लगभग बारह हजार रुपए वेतन का भुगतान नहीं किया। श्री तिवारी की बहन की शादी है।



वह बिहार से चल कर नोएडा आए हैं कि कम्पनी वाले भुगतान कर देंगे तो कुछ आर्थिक मदद मिलेगी। मंगलवार को वह कम्पनी पर गए तो वहां विवाद हो गया और कम्पनी वालों ने उन्हें धमकियां व गाली गलौज देकर भगा दिया। घटना की सूचना पीड़ित तिवारी ने मंगलवार को दोपहर में करीब दो बजे थाना फेज थ्री पर एस एच ओ ध्रुव भूषण दूबे से मिलकर देने का प्रयास किया।। लेकिन एस एच ओ ने पीड़ित से मिलना उचित नहीं समझा। जबकि एस एच ओ श्री दुबे जी अपने चैंबर में आराम से बैठे हुए थे और अपने चाहने वालों से वार्ता कर रहे थे।



इसके बाद पीड़ित ने वहां पर तैनात महिला एस आई श्रीमती गुप्ता से मिलकर अपनी व्यथा बताने का प्रयास किया तो उस महिला एस आई ने चौकी पर जाकर शिकायत करने का सलाह दे दिया। साथ ही यह भी कह दिया कि पुलिस इसी काम के लिए थोड़ी ही बैठीं है। उक्त घटना क्रम को थाने के बगल में स्थित चाय की एक दुकान पर और थाने के भीतर खड़े कुछ जागरूक लोगों ने भी देखा सुना और उन लोगों के मूंह से बरबस निकल पड़ा - कुछ भी हो जाए, पुलिस के चाल, चरित्र और चिंतन में कोई सुधार नहीं हो सकता है। बेचारा न्याय की उम्मीद में आया पीड़ित निराश होकर लौट गया। इस संबंध में एस एच ओ ध्रुव भूषण दूबे से बात करने का प्रयास किया गया लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया। अब देखना है इस मामले में पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारीगण संज्ञान लेते हुए कोई विधिक कार्रवाई करते है अथवा रद्दी की टोकरी में यह मामला जाकर दम तोड देता है।

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